Add To collaction

दाग

छोड़ उंगली!

मात-पिता की!
उजली,
धवल चूनरी,
सिर पर!
उड़ती जाए,
स्वछंद गगन में!
कहीं फुदकती, 
कहीं बैठती,
कहीं चहकती,
घर आँगन में!
लाड़ली बिटिया,
है बाबुल की!
आँखों में,
उड़ने के सपने!
निश्चय कुछ,
कर जाने का!
जग में, 
नाम कमाने का!
मात-पिता की,
इज्जत इसमें!
भाई का,
स्वाभिमान समाया!
परिवार का,
मान है मुझ पर!
दाग न लगने दूं,
चूनर पर!
अनजानी थी,
इस दुनिया से!
कलुषित नीयत,
बदकारों से!
नज़र पड़ गई,
किसी बाज की!
मार झपट्टा,
दबोच लिया!
मांस नोच लिया,
अंगों से!
आत्मा को, 
लहू-लुहान किया!
बेदाग, 
चुनरिया सतरंगी!
सिर से सरकी,
दागदार हुई!
समाज के,
ठेकेदार खड़े!
दोहरी,
मानसिकता,
से भरे पड़े!
चुनरी पर दाग,
कहाँ-कहाँ पर है??
सब हिकारत से,
दोष उड़ेल रहे!
बेदाग चुनरिया,
पर किस हवसी ने, 
क्यों दाग लगाया??
उन पर कोई इल्ज़ाम नहीं!!
भूल गए संस्कार, धर्म सब,
मर गई है जैसे आत्मा!!
"श्री" ईश्वर का कोई खौफ नहीं!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


   11
4 Comments

जी अतिशय खूबसूरत रचना।

Reply

Alka jain

15-Jul-2023 11:30 AM

Nice 👍🏼

Reply

Abhinav ji

15-Jul-2023 07:53 AM

Very nice 👍

Reply