उम्मीद
हे मानव उठ जाग खड़ा हो,
कब तक ये अश्रु बहाएगा।
कर्मठ तुझको ही बनना है,
सब पहले सा हो जाएगा।
यामिनी अभी कुछ बाकी है,
अँधेरा भी अभी गहरा है।
जितनी काली रैन गुजारी,
प्रभात उजला हो जाएगा।
सुख दुख मौसम जैसे होते,
कभी खुशियाँ कभी आँसू है।
पतझड़ बाद बसन्त बहार है,
फिर नवपल्लव खिल जाएगा।
सूरज जागा तिमिर मिट गया,
उम्मीद प्रभा अंबर उतरी।
सोने सी चादर फैलाई,
कण-कण में आस जगाएगा।
माना झुलसी वसुधंरा है,
जल स्रोत भी अभी सूख रहे।
कुसुमाकर फिर भी आएगा,
जो हरीतिमा बिखराएगा।
दीपक सा बनकर देख कभी,
जो अँधियारे में रहता है।
स्याह होने तक स्व जल जाए,
तमिस्र को चीर भगाएगा।
बह रहीं ज़हरीली हवाएँ,
पग पग पर मुर्दे जलते हैं।
ईश कृपा की वर्षा होगी,
गहराता धुआँ छँट जाएगा।
अभी वाटिका सूनी है "श्री",
पंछी का कलरव छिपा हुआ।
कुसुमित हो जाएँगी कलियाँ,
समीर सुगन्ध फैलाएगा।
पहले सा हो जाएगा सब,
पहले सा हो जाएगा।
स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
RISHITA
23-Jul-2023 12:37 PM
Nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
23-Jul-2023 10:54 AM
खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति
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Abhinav ji
23-Jul-2023 09:16 AM
Very nice 👍
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