रात
ये रात बड़ी मुश्किल, उम्मीद न खो साकी।
जब जाम छलक जाए, नजरों से पिला साकी।
महफिल में यही रौनक, छलके जरा जरा सी।
नजरें न चुरा हमसे, हमें कद्र है कला की।
उलझे तेरी नज़र में, ये उम्र गुजर जाए।
मिलते रहे हैं धोखे, कोई फिक्र न क़ज़ाकी।
खामोश लव लरज़ते, ख्वाहिश रही अधूरी।
ये रात भी हो अंतिम, बस जिंदगी है शाकी।
हसरत दुआ में लिपटी, गम बंद करलें मुट्ठी।
बिखरे हयात पल-पल, किस काम की चलाकी।
बिखरे हैं तेरे गेसू, ये जिंदगी का सावन।
प्यासा फिर भी तन-मन, कैसी तेरी बेबाकी।
झुकती हैं तेरी पलकें, 'श्री' शब ठहर न जाए।
कल की किसे खबर है, ये रुखसती जहां की।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
RISHITA
23-Jul-2023 12:16 PM
Best poetry
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Madhu Gupta "अपराजिता"
23-Jul-2023 11:02 AM
सुंदर अभवक्ति 👌👌👌
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Abhinav ji
23-Jul-2023 09:19 AM
Very nice 👍
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