प्रेम
मैं नहीं समझना चाहती प्रेम क्या होता है,
क्योंकि जो समझकर किया जाए वो प्रेम कहाँ होता है।
मैं बस पुकारना चाहती हूँ तुम्हारा नाम अनगिनत बार
तुम्हारे नाम की मिश्री को जिव्हा पर महसूस करना चाहती हूँ हर बार।
मैं जीना चाहती हूँ हर पल तुम्हारे साथ
कभी सीने में छिपकर तुम्हारे,
कभी यूँ ही बिना बात के झगड़कर तुमसे
जितनी भी साँसे हैं मेरे नसीब में,
मैं बस वो तुम्हारे साथ गुजारना चाहती हूँ।
मेरे लिए प्रेम का अर्थ हो "तुम"
मेरे नाम से जुड़ा तुम्हारा नाम,
सहेजकर रखता है मुझे तुम्हारे प्रेम में।
❤सोनिया दीजाधव
ऋषभ दिव्येन्द्र
12-Oct-2021 06:13 PM
खूबसूरत पंक्तियाँ 👌👌
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Sonia Jadhav
12-Oct-2021 06:22 PM
शुक्रिया👍👍
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Swati chourasia
12-Oct-2021 03:19 PM
Very beautiful 👌
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Sonia Jadhav
12-Oct-2021 06:22 PM
शुक्रिया👍👍
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Ramsewak gupta
12-Oct-2021 03:19 PM
Very excellent your post
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Sonia Jadhav
12-Oct-2021 06:22 PM
शुक्रिया👍👍
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