प्रेम

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मैं नहीं समझना चाहती प्रेम क्या होता है,  क्योंकि जो समझकर किया जाए वो प्रेम कहाँ होता है। मैं बस पुकारना चाहती हूँ तुम्हारा नाम अनगिनत बार तुम्हारे नाम की मिश्री ...

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