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प्रतियोगिता# नारी हिंसा

विधा-सरसी छंद
विषय-नारी हिंसा
मात्रा भार16/11

नारी हिंसा करते निशिदिन, बनते पापी लोग।
सभी वासना से पीड़ित हैं, लगा हुआ है रोग।।
हर क्षण नर बस करना चाहे, नारी तन उपभोग।
आएँ कृष्ण बचाने लज्जा, दिखता कब संयोग।।

नारी हिंसा में अब रत है, यह सारा संसार।
नवरात्रों में कहते देवी, करते क्यों व्यभिचार।।
नारी के होने से सुखमय, लगते हैं गृह-द्वार।
क्यों करते नारी का शोषण, वह तो है उपहार।।

नारी हिंसा आँसू लाती, मरता हृदय-लगाव।
तन छलनी सा हो जाता है,होते मन पर घाव।।
नारी तुम हो नौका-माँझी, आप चलाओ नाव।
क्यों अबला कहलातीं जग में,कब है शौर्य अभाव।।


प्रीति चौधरी"मनोरमा"
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।

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4 Comments

बेहतरीन और उत्कृष्ट अभिव्यक्ति,,,, प्रेरित करती हुई रचना

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Alka jain

31-Jul-2023 12:42 AM

Nice

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Varsha_Upadhyay

30-Jul-2023 11:13 PM

बहुत खूब

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