शायरी
कहाँ-कहाँ से सिलूँ ऐ जिंदगी,
तू तो उधड़ती ही जाती है…..!!
उम्मीदें तो हमारी वक्त ने छीन लीं,
हम मुकद्दर को ही बस कोसते रह गए….!!
संघर्ष से ही बदलती है तकदीर जहां की,
वह झरना ही क्या जो चट्टान फोड़ के न निकले۔۔!!
जहाँ शख्स नहीं होता वहाँ उसके गुण-अवगुण की चर्चा होती है, सामने तो सिर्फ औपचारिकता निभाई जाती है….!!
पत्थर के शहर में शख्सियत भी है संगदिल,
तोड़े हैं बुत खुदा के, खुद को खुदा बता के…!!
बहुत कमजोर हो गई है डोर रिश्तों की,
कि अब गाँठ बाँधने की कोई कोशिश ही नहीं करता..!!
ए खुदा कितना नचाएगा तू अपने बंदे को,
तेरे ही फ़लसफ़े का किरदार हूँ मैं…!!
चलो पैदल ही निकल चलते हैं इन राहों पर,
जिंदगी का सफ़र चार दिन का ही तो है….!!
जिंदगी के सफर में किस मोड़ पर सुकून मिल जाए….""
ऐ जिंदगी चल इसी उम्मीद से चलते हैं…!!
जिंदगी के सफर में अपने ही हाथ छोड़ देते या छुड़ा लेते हैं…""
गैरों को तुम्हारी ठोकर और तरक्की से कोई मतलब नहीं …..!!
जब मुकद्दर साथ न दे तो, तो रास्ते भी रूठ जाते हैं….!!
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Shashank मणि Yadava 'सनम'
02-Aug-2023 07:48 AM
बेहतरीन,,, और खूबसूरत अभिव्यक्ति
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Reena yadav
02-Aug-2023 12:31 AM
👍👍
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Punam verma
01-Aug-2023 02:11 PM
Very nice
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