वंदना
1
है कृपा जब मात की, लेखन को आशीश,
धन्य धन्य में हो गई, मदद करो जगदीश।।
2
माटी बोली प्रेम से, मैं तो बड़ी अनूप।
सबआकारों में ढली, मेरे ही सब रूप।।
3
हाथ जोड़ विनती करूं, गर्व न करियो कोय।
गर्व यहां जिसने किया, नाश उसी का होए।।
4
गागर में जल है भरा, रहे हमेशा शुद्ध।
मिलकर सबसे तुम रहो, कहे महात्मा बुद्ध।।
5
भाव के हैं पुष्प खिले, जगमग जीवन होय।
करती हूं आराधना, लेखन निर्मल होय।।
6
विनय करूं मां शारदे, भरो ज्ञान भंडार।
लेखन मिरा चलता रहे, भरे रहे उद्गार।।
7
वंदन में करती रहूं, लगा रही हूं आस।
चरण कमल को पूजती, भर दो मधुर मिठास।।
8
कविता सुंदर में लिखूं, दे दो इतना साथ।
विद्या की देवी तुम्ही, थाम लो मेरा हाथ।।
9
बनूं पुजारी मैं तिरी, इतनी सी है बात।
लेखन को बल है मिले,हो जाए बरसात।।
Milind salve
12-Aug-2023 12:50 PM
Nice
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Gunjan Kamal
12-Aug-2023 11:42 AM
बहुत खूब
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