Dr. Neelam

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विरहदग्धा





*विरहदग्धा*

सपनों की फिर इक
नगरी
मन-मानस पर छाई
रजनी के माथे को 
छूकर चाँदनी
हर सूं छाई
यादों के गलियारों में
हलचल
दिल में प्रिय-मिलन
की अकुलाहट।

बहते चाँदनी के दरिया
में ख्वाबों की तरणि
तैरे
रह-रहकर धड़कनों 
के सुर बहके
मूँदी आँखे शिथिल तन
नींदिया सरके
आस पिय-मिलन की
धीमे-धीमे तन दहके।

रजत-शीत में सुलगती
साँसे 
छिटकी धवल निशा में
बढ़ती इंतजार की खाई
ख्वाब छिटककर
पात-पात जा अटके 
रोम-रोम कलपते दहके
तारक जड़ी रजनी धीरे
-धीरे सरके
विरहदग्ध हृदय पर
वियोगी-जख्मों पर 
शीतल चाँदनी की शैय्या
पर लिटा, सोम मरहम
लगा रहा।

        डा.नीलम




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5 Comments

बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव

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Rupesh Kumar

13-Dec-2023 09:54 PM

V nice

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Reyaan

12-Dec-2023 07:41 PM

Nice

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