Dr. Neelam

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हमसफर

*हमसफर*

मुझको कभी तन्हाई में,
तन्हा नहीं रहने देता,
गिरने को हो निर्झर आँसू,
पलक शिखर पर ही
रोक लेता।

भरी भीड़ शाख का
पत्ता बन ,
टूटने को हो जाऊँ
विवश,
लेकर हाथ मेरा
अपने हाथ में
गिरने नहीं देता।

सोच के गहरे
समंदर में कभी लगूँ
डूबने,
देकर सहारा 
कंधा-ए-कश्ती का
उबार लेता है।

पीड़ाओं की गाँठ
कितनी ही
उलझी क्यों न हो,
हल्के-से लबों की
छूअन से,
हर गाँठ सुलझा
देता है।

वो मेरा हमदम,
हमसफर,ग़मगुजार है,
मेरे जीने का मकसद,
मेरा खैरख्वाह है।

       डा.नीलम

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2 Comments

Punam verma

19-Aug-2023 07:45 AM

Very nice

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