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कफ़न

महल अटारी गढ़-गढ़ बैठे,

प्राचीरों पर तल्ले तल्ला,
उजड़ गई जब शाह की बस्ती,
कहीं द्वार मेहराव मिला।

पल-पल वक्त गुजरता जाए,
मौज मस्ती में लिपटा मिला,
कश्ती तूफानों ने घेरी,
साहिल का कब साथ मिला।

सोच रहा क्या खोया पाया,
कैसी शिकायत किससे गिला,
जैसी तेरी रंग फ़कीरी,
वैसा ही तुझे इनाम मिला।

तख्तो-ताज के जो शहंशाह, 
दुनिया पर हुकूमत वक्त चला,
महफिल में परियों की छम-छम, 
दो गज जमीन एकांत मिला।

मिला किसी को जमीन टुकड़ा,
किसी को दो गज कफ़न मिला,
कुछ ऐसे बदकिस्मत हैं "श्री",
जिनको जमीन ना कफ़न मिला।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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3 Comments

खूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति

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Reena yadav

23-Aug-2023 01:21 PM

👍👍

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Sarita Shrivastava "Shri"

23-Aug-2023 09:25 AM

👌👌

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