श्रद्धा
आस्था,विश्वास,श्रद्धा,समर्पण,
ये इंसान की भावनाएँ।
करनी कथनी जड़ है इसकी,
जबरन जागृत कब हो पाएँ।
मंदिर मस्जिद कहीं भी जाएँ,
लेकिन श्रद्धा नहीं मनस में,
गुनाह करते रहें तिमिर में,
भ्रमित रहते हैं अंतस में।
अपने कर्मों पर नहीं श्रद्धा,
भटकते फिरते सब पंथों में,
कोई पीर पर मत्था टेके,
कोई अटके गुरु ग्रंथों में।
विश्वास दिखाएँ ईश्वर में,
कब राह पकड़े सत्कर्म की,
ईश्वर का कब डर है कोई,
भावना छल कपट कुकर्म की।
समर्पण चाहिए साथी से।
खुद अंतस रंगीन तितलियाँ,
पत्नी-बच्चे राह ताकते,
ये तकता नित नई लड़कियाँ।
स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Shashank मणि Yadava 'सनम'
28-Aug-2023 08:00 AM
बेहतरीन और यथार्थ चित्रण
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Reena yadav
27-Aug-2023 02:21 PM
👍👍
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Sarita Shrivastava "Shri"
27-Aug-2023 11:16 AM
👍👍
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