क़िस्मत
*क़िस्मत*
साँसों में मेरी घुली हो,
तुमको भुलाऊँ मैं कैसे?
दिन-रात ताकूँ मैं तुमको-
चकोरी लखे चाँद जैसे।।
कभी भी न क़िस्मत मिलाई,
लगे फिर मिले हम कहीं हैं।
अहसास ऐसा क्यूँ होता,
संग में रहे हम यहीं हैं?
पिछले जनम का ये रिश्ता,
लगता हमें अब तो ऐसे।।
चकोरी लखे चाँद जैसे।।
भूलना आसान न होता,
कभी भी नहीं प्यार सोता।
सदा खोजता ही फिरे ये,
रहता भले उसको खोता।
प्रेम-बंधन नहीं टूटता-
रहे ये वैसे ही वैसे।।
चकोरी लखे चाँद जैसे।।
बरु रूठ जाए ये दुनिया
भले ये जग भी छूटे ही।
प्रेम की ज्योति जलती सदा,
प्रेम-कलश तो न फूटे ही।
क़िस्मत से है प्रेम मिलता,
मिलता नहीं दे के पैसे।।
चकोरी लखे चाँद जैसे।।
प्रेम होता निराला-अमिट,
कहते सभी दुनिया वाले।
हर मोड़ भी ज़िंदगी का,
रहता है क़िस्मत हवाले।
प्रेम पर हक़ केवल देती,
क़िस्मत सदा ऐसे-तैसे।।
चकोरी लखे चाँद जैसे।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Gunjan Kamal
09-Sep-2023 03:55 PM
👏👌
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
02-Sep-2023 07:10 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति
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