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विरह-वेदना

*विरह-वेदना*

चिराग़े मोहब्बत जलाया था हमने,
के कर दें उजाला हम उनके हृदय में।
मग़र पड़ गया पाला पाषाण दिल से-
जो समझे नहीं फ़र्क़ ज्वाला-मलय में।।
     जब भी किए हम ख़याल-ए-सनम तो,
     महज़ अक्स उनका उभर मन में आया।
     नहीं कुछ सुहाए, नहीं कुछ भी भाए-
      गए बीत सारे दिन अनुनय-विनय में।।
                         चिराग़े मोहब्बत.........।।
कभी जा के मंदिर में घंटी बजाए,
गुरु-द्वारा जा-जा के अरदास गाए।
जा मस्ज़िदों में अजाने दिया  भी-
मग़र श्रम गया व्यर्थ सारा प्रणय में।।
                       चिराग़े मोहब्बत............।।
इश्क़ में,रब में होता नहीं कोई अंतर,
है पढ़ा हमने ऐसा किताबों के अंदर।
इस लिए ही तो जा-जा के हर धर्म-स्थल-
हैं गाए निरंतर हम गीतों को लय में।।
                   चिराग़े मोहब्बत.............।।
शमशीर ताने है रहता ज़माना,
नहीं प्रेम का गीत लगता सुहाना।
भले शहरे मज़हब बसाता रहे ये-
नहीं शांति मिलती पर, आतंक-भय में।।
               चिराग़े मोहब्बत............।।
है कौन सा मंत्र कोई  बताए,
जिसे पढ़ के रूठे सनम को मनाएँ?
कभी रूठे दिल में न अनुराग  पलता-
मिले सुख सृजन में,न मिलता प्रलय में।।
              चिराग़े मोहब्बत............।।
आलमे इश्क़ होता है अनुपम-अनोखा,
परवाह नहीं,इसमें मिलता है धोखा।
इश्क़ की हार में भी तो मिलती ख़ुशी है-
मिले जो न शायद कभी भी  विजय  में।।
       चिराग़े मोहब्बत जलाया था हमने,
       के कर दें उजाला हम उनके हृदय में।।
                     © डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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5 Comments

Sushi saxena

13-Sep-2023 03:49 PM

V nice

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बहुत ही सुंदर और बेहतरीन अभिव्यक्ति

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Gunjan Kamal

11-Sep-2023 08:24 PM

बहुत खूब

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