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परिंदा...

.........परिंदा........

हवा न दो उन विचारों को
जो लगा दे आग पानी मे
जमीन पर खड़े रहना ही
आकाश को छू लेना है...

सीढियां ही पहुचाती हैं हमे
उछलकर गगन नही मिलता
भुला दो कुछ पन्नों को तुम
हर पन्नों मे जीवन नही मिलता..

अंगुलियों को देख लिया करो
जान लोगे  तुम अपनी सच्चाई
गिरती हुई बूंदों को देखकर
सागर भी देख लिया करो...

बदलता हुआ मौसम है
जमी से फलक दूर नही
दबा हुआ बीज भी कभी
खिल उठता है फूल बनकर..

उड़ता हुआ परिंदा हूं
रास्ता तो देख ही लूंगा
दरख़्त ही है आशियाना मेरा
हवाएं भी गिराने से डरती हैं..
.......................
मोहन तिवारी ,मुंबई

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5 Comments

Varsha_Upadhyay

16-Sep-2023 09:02 PM

Nice 👌

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सुन्दर और खूबसूरत अभिव्यक्ति

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Abhinav ji

16-Sep-2023 07:40 AM

Nice

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