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कुण्डलिया(अभिमान)

कुण्डलिया(अभिमान)


होता है अभिमान ही,जीवन में अभिशाप।
इसे कभी मत कीजिए,समझें इसको पाप।।
समझें इसको पाप,नष्ट यह जीवन करता।
देता कष्ट अपार, अंत  रावण  सा  रहता।।
कहें मिसिर हरिनाथ,अभी जीवन में रोता।
इसका करके त्याग,सुखी जग मानव होता।।

लंका नगरी स्वर्ण की,हुई भस्म सुन मीत।
रावण के अभिमान ने,किया बेसुरा गीत।।
किया बेसुरा गीत,नहीं अब रहा ठिकाना।
रावण का अभिमान,उजाड़ा नगर सुहाना।।
कहें मिसिर हरिनाथ,नहीं अब इसमें शंका।
निश्चित ही अभिमान,जलाए विजयी लंका।।


             ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                 9919446372

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3 Comments

Wahhhh wahhhh,,, लाजवाब लाजवाब लाजवाब

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Gunjan Kamal

20-Sep-2023 09:47 PM

👏👌

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Varsha_Upadhyay

20-Sep-2023 03:28 PM

Nice 👍🏼

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