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कुण्डलिया(अभिमान) होता है अभिमान ही,जीवन में अभिशाप। इसे कभी मत कीजिए,समझें इसको पाप।। समझें इसको पाप,नष्ट यह जीवन करता। देता कष्ट अपार, अंत रावण सा रहता।। कहें मिसिर हरिनाथ,अभी जीवन में ...