अभिमान
अभिमान न कर इस काया पर,
फर-फर फर जल जाएगी।
हाड़ मांस से देह बनी है,
माटी में मिल जाएगी।
कब कुछ तेरा मेरा जग में,
कुछ दिन रैन बसेरा है,
आएगा जब यम संदेशा,
उठने वाला डेरा है।
मुट्ठी बाँधे आया जग में,
हाथ पसारे जाएगा,
छल फरेब से माया जोड़ी,
तू ही भोग न पाएगा।
जर्जर काया अंत समय में,
लाचारी बढ़ जाएगी,
जिस दौलत पर मौज करें सब,
तेरे काम न आएगी।
पाप पोटली सिर पर तेरे,
परिजन भागीदार नहीं,
मौज-शौक के दिन भी गुजरे,
तेरी कोई पूछ नहीं।
तड़-तड़ तड़ तड़ बिजली गरजे,
घड़-घड़ घड़ मेघा बरसे,
ये तन है माटी का पुतला,
घुल जाए तन मिल जल से।
जलते जलते मद्धम ज्योति,
अंतिम लौ बुझ जाएगी,
सत्कर्मों की बांध ले गठरी,
"श्री" जग नाम कमाएगी।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Milind salve
01-Oct-2023 10:47 AM
V nice
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
21-Sep-2023 08:13 AM
रचना के भाव के अनुसार ही तस्वीर लगाएं पोस्ट के साथ,,,, रचना के भाव अलग हैं,,, तस्वीर के भाव अलग हैं
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
21-Sep-2023 08:03 AM
बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव
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