सम्मान के अभिलाषी-किन्नर समाज
जिसने रचा तुम्हें
उसी ईश्वर के द्वारा रची हुई
एक अनुपम कृति हूँ मैं।
सम्मान की अपेक्षा रखती हूँ मैं,
मेरे प्रति तुम्हारे व्यवहार में।
माना तुम्हारी नज़र में महज़ एक किन्नर हूँ मैं,
मेरी नज़र में तुम्हारी जैसी ही एक इंसान हूँ मैं।
मेरा चौराहों पर ताली बजाते हुए नाचना
तुम्हारी गाड़ियों को रोककर पैसे मांगना
मेरा शौक नहीं , मजबूरी है।
परियक्ता हूँ मैं, परिवार और समाज के द्वारा ठुकराई गयी हूँ,
ना शिक्षा का अवसर कभी मिला, ना ही रोजगार का,
दिन में मेरा उपहास उड़ाते हो, अपनी कामना-पूर्ति के लिए रात को मेरे ही दर पर आते हो तुम।
कैसे जियूँ आत्म सम्मान से, रोजगार का कोई साधन नहीं,
गरीबों के बारे में सोचती है सरकार, बड़ी-बड़ी बातें करता है समाज,
गरीब मनुष्य की श्रेणी में आते हैं,
और हम किन्नर इंसान तक नहीं।
सम्मान चाहिए था थोड़ा सा,
उपहास और उपेक्षा नहीं।
रोजगार के अभाव में चौराहों पर ताली बजाते हुए
चंद पैसों के लिए नाचना, तुम्हारी गाड़ी को रोकना
मेरी मजबूरी है, शौक नहीं।
❤सोनिया जाधव
#लेखनी काव्य प्रतियोगिता
#सम्मान
Zakirhusain Abbas Chougule
18-Oct-2021 10:56 AM
Nice
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Renu Singh"Radhe "
18-Oct-2021 10:49 AM
बहुत खूब
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Dr. SAGHEER AHMAD SIDDIQUI
18-Oct-2021 10:37 AM
Nice
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