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ग़ज़ल

*ग़ज़ल*

तुम जहाँ हम वहाँ से दूर नहीं।
अपनी मंजिल निशाँ से दूर नहीं। 

ये अलग जिंदगी अभी चुप है।
आईना हक बयाँ से दूर नहीं।

किस कदर बढ़ गयी है महँगाई।
रोटियां आहो-फिगाँ से दूर नहीं। 

गाँव हमने बसा लिया इस पर। 
शहर अब आसमां से दूर नहीं। 

मिलके कीजे मुकाबला ग़म का 
वक्त ये इम्तेहाँ से दूर नहीं। 

जिसने पैदा करी है ये दुनिया। 
वो खुदा अपनी जां से दूर नहीं। 

मिरी हमदर्द शायरी है मेरी।
ये मिरे दिल से जां से दूर नहीं।

मैं वहाँ हूँ के अब जहां "शायर"।
मेरी मंज़िल जहाँ से दूर नहीं।


*शायर मुरादाबादी*




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7 Comments

KALPANA SINHA

29-Sep-2023 01:54 PM

Amazing

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Alka jain

28-Sep-2023 05:37 PM

V nice

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सुन्दर सृजन

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