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आभास

खुद से ही घबरा कर भागा,

जा बैठा तन्हाई में।
सोच-सोच कर सोच रहा हूँ,
जा पहुँचा गहराई में।

विगत चिंतन समक्ष निरंतर,
खुले चक्षु चलचित्र कालांतर,
कहाँ-कहाँ मैं पथ से भटका-2,
कहाँ चला सच्चाई में।

मन आभास मिले पल-पल पर,
कुपथ चला या बढ़ा सुपथ पर,
झटक दिए सब मन के संशय-2,
अँधियारी परछाईं में।

दरख़्त सघन मजबूत बनकर,
खड़ा रहा मौसम में तनकर,
शाख बसेरा पंछी करते-2,
जीवन की तरुणाई में।

पतझड़ एक उम्र का आया,
आंधी थपेड़े न सह पाया,
उड़ गया कोटर से पखेरू-2
अकड़ती अंगड़ाई में।
 
जीवन की संध्या पर आकर,
देख रहा हूँ दरख्त हिलाकर, 
कहाँ-कहाँ से कली चुराई-2,
पौधों की रोपाई में।

झांक रहा हूँ भीतर-बाहर,
छोटी सी कुटिया में आकर,
राम-भजन "श्री" मन कब रमता-2,
बेक़दरी ओछाई में।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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10 Comments

Milind salve

01-Oct-2023 10:41 AM

V nice

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HARSHADA GOSAVI

01-Oct-2023 07:23 AM

वाह

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Gunjan Kamal

30-Sep-2023 08:54 AM

👌👏

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