सुकून
सुकून
पांव के छाले फट रहे, होठों पे पपड़ी जम रही
प्यास है बड़ी लगी, जिंदगी फिसल रही।
चले जा रहे हैं हम, धूप सर पे जल रही
मरुभूमि सी जिंदगी, तलाश है सुकून की।
मृगमरीचिका छल रही, रेत बदन को जला रही
मजिले अभी दूर है, थक के हो चुके अब चूर हैं।
एक छांव की तलाश है, मुझे मंजिलों की आस है
झुकें नहीं, रुकें नहीं, इस जिंदगी की राह में।
बस सामने है कहकशां, मेरे प्यार का वो जहां
सुकून मुझ को मिल गया, जहां मेरा खिल गया।।
आभार - नवीन पहल - ०७.१०.२०२३ 🙏🌹😀❤️
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Gunjan Kamal
08-Oct-2023 01:49 PM
शानदार
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
08-Oct-2023 11:17 AM
बेहतरीन
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Reena yadav
07-Oct-2023 06:31 PM
👍👍
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