Add To collaction

तूफान


नीड़ परिंदे का उजड़ा,

मौज से हार कर बैठा,

बिखरे जमीन पर तिनके,

खुदा से रूठ कर बैठा।


कहाँ कोई निशां बाकी,

न कोई छोर जीवन का,

डुबा के कस्तियाँ अपनी,

समंदर मौन रख बैठा।


गुमां मुझको हुआ बेजा,

रवानी रोक कर देखें,

साहिल मौजों का बंधन, 

सैलाब भूल कर बैठा।


बड़ी मुश्किल हैं ये राहें,

भटकता फिर रहा इनमें,

बहुत बेचैन है दरिया,

तूफ़ान रोक कर बैठा।


कस्तियाँ मोड़ लो अपनी,

बोझिल तूफानी राहें,

कहाँ किससे छिपे कोई,

रहबर खंजर ले बैठा।


सहरा-सहरा भटका हूँ,

कहीं तुझको नहीं पाया,

कुरंग वन बाबरा फिरता,

तू जर्रे-जर्रे में बैठा।


बढ़ती बाहर बेचैनी,

निशान अंदर भी बाकी,

छाले किसने देखे "श्री",

कौन मरहम लिए बैठा।


स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"

धौलपुर (राजस्थान) 

   10
11 Comments

Arti khamborkar

13-Oct-2023 05:52 AM

nice

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

13-Oct-2023 09:28 PM

🙏

Reply

Abhinav ji

13-Oct-2023 08:56 AM

Nice 👍

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

13-Oct-2023 09:28 PM

🙏

Reply

सुन्दर सृजन

Reply

Sarita Shrivastava "Shri"

13-Oct-2023 09:27 PM

🙏

Reply