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निष्ठुर

पुरुष और नारी,

सृष्टि की, 
दो अनुपम कृतियाँ,
प्रज्ञा पूर्ण अलौकिक,
नारी कोमलांगी,
ममत्व नेह से परिपूर्ण,
जीवन सृजन का विशेष कार्य,
वह पूर्णतया सफल!!!
पुरुष निष्ठुर, कठोर हृदय,
भावनाओं पर नहीं नियंत्रण,
परिवार के लिए नहीं समर्पण।
मौका मिलते ही बेवफाई!!
कोठे की रौनक बनता है!
पत्नी बच्चों का सौदाई!!
पूजन की थाली को प्रतीक्षा!!
पत्नी बच्चे द्वार टकटकी!!
गृहक्लेश की कोई फिक्र नहीं।
अपने अंश की कोई फिक्र नहीं,
चार बूंदें कहीं पर छोड़े,
पागल स्त्री के संग मौज,
भिखारिन को भी न बख्शे!!
दादी उम्र में दीखे वासना!!
लाश कब्र से खींचे वासना!!
भेड़-बकरी से कामेच्छा।
कहां है चिंता बेदर्दी को???
कहाँ पलेगा अंश हमारा!!
कहाँ भटकेगा अंश हमारा!!
पागल के संग शायद डोले!
कोठे पर दल्ला बन जाए।
लड़की शायद जिस्मफरोशी!!
हो सकता है भीख सड़क पर।
ये समाज का आईना सच्चा!!
इससे जानवर भी घबराए!!
बलात्कारी भी शामिल है।
बच्चे यतीम खाने पलते!
कैसा पुरुष बनाया कुदरत!!
अपने अंश "श्री" कहाँ फिक्र है??

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)

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3 Comments

Mohammed urooj khan

23-Oct-2023 02:08 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Reena yadav

21-Oct-2023 11:20 PM

👍👍

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Sarita Shrivastava "Shri"

21-Oct-2023 11:07 PM

👍👍

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