Anju Dixit

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मर्यादा



 पलकें झुकाकर चलो,
घूँघट गिराके चलो,
 जीवन भर अपनाना,
सारे संस्कार।
 क्यों सारी मर्यादा बनी
बस औरत के लिए।
पुरुष के नाम पर,
न कोई संस्कार।
यह मर्यादा नही,
जंजीरे हैं।
जो डाल दीं जाती ,
जब से औरत पैदा हो
उसके जहन में,
केवल शरीर पर नहीं
बल्कि उसकी आत्मा पर।
तमाम उम्र हम औरतें उस म

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5 Comments

Seema Priyadarshini sahay

19-Oct-2021 10:19 PM

सुंदर पंक्तियां पर.. अधूरी रचना है मैम।

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बढ़िया 👌👌 अधूरी है क्या....????

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Swati chourasia

19-Oct-2021 07:21 PM

Aachi hai kavita pr kuch adhuri si lag rahi

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