मशाल
........मशाल ......
बढ़ रह सैलाब इधर
तुम्हे अभी रहनुमा चाहिए
उठा लो खड़ा हाथों मे तुम
अब हमे निजी सुरक्षा चाहिए..
लगी आग जिन घरों मे देखो
भीतर से खिंचती बेटियां देखो
देखो न अब केवल रोटियां तुम
गर्त मे गिरती पीढियां देखो...
रसूख, न दौलत , न जात देखो
हो रहे जिधर से आघात देखो
बुजुर्गों का अपने इतिहास देखो
आतंकियों के चेहरे का अट्टहास देखो...
मुस्कान और किलकारियां देखो
मन के भीतर की दुश्वारियां देखो
आंगन की सूखती क्यारियां देखो
कुछ अपनी भी तैयारियां देखो......
बुझती नही आग पर कुआं खोदने से
संभलता है घर आज के सोचने से
समझे न अब तो समझना भी न होगा
जलता मकां और पसरा हुआ वीरान होगा....
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मोहन तिवारी,मुंबई
kashish
12-Nov-2023 11:09 AM
Nice
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Mohammed urooj khan
06-Nov-2023 12:21 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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