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मुलाक़ात

मुलाकात होती है रोज वक्त से,

कभी सुबह से तो कभी शाम से,
फिर भी न जाने क्यों इंतजार है,
तेरे ख़यालों भरी शबे रात से।

रात होते ही काली परछाइयाँ घेर लेती हैं,
सुबह से न जाने कब की मुलाकात हुई है।
बड़ी उम्मीद से निकले थे घर से मगर,
तुझसे नहीं तेरे ख़यालो से बात हुई है।

निकल जाता हूँ खुद ही खुद में गुम होकर,
तेरे सज़दे की रहगुज़र से रूबरू हो कर,
तकदीर ने तुझे इश्क से मालामाल कर दिया,
मैं दुआएँ मांगता ही रह गया बाहें फैलाकर।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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2 Comments

Gunjan Kamal

03-Dec-2023 06:34 PM

👌👏

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Sarita Shrivastava "Shri"

25-Nov-2023 10:05 PM

👍👍

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