मुलाक़ात

1 Part

242 times read

4 Liked

मुलाकात होती है रोज वक्त से, कभी सुबह से तो कभी शाम से, फिर भी न जाने क्यों इंतजार है, तेरे ख़यालों भरी शबे रात से। रात होते ही काली परछाइयाँ ...

×