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मुस्कान

छिपाकर दर्द कई दिल में, 

ठहर जाती है होठों पर।
मधुर मुस्कान चेहरे की,
बज़्म में रंग जमाती है।

कत्ल करते हैं इस दिल को, 
वो अल्फाजों के ख़ंजर से,
छिपाकर आह के कतरे,
रंग-ए-महफिल सजाती है।

तेरे काँधे पर सिर रखकर, 
तसव्वुर(ख़याल) में बहे आँसू,
कहाँ रुकती है फिर बारिश,
बिना मौसम सताती है।

न पड़ जाए कहीं आदत,
हमें पल-पल पर रोने की,
छलकता दर्द आँखों से,
इसे मुस्कान छिपाती है।

बज़्म-ए-सुख़न(महफ़िल) की रंगत,
छलकते दर्द-ए-दिल प्याले,
रौंदकर अपनी ही ख्वाहिश,
गज़ल वाह-वाह सुनाती है।

मज़्लिस में कर नहीं सकते,
बयां हाल-ए-दिल अपना,
ख़ुसूसियत(विशेषता) पूछे जब कोई,
हाल तेरा बताती है।

ख्यालों में तेरे उलझे,
हवाएँ भी खुशामदीद(चाटुकारिता),  
फ़रेबी निकली “श्री” शामें,
बर्बादी जश्न मनाती है।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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5 Comments

Alka jain

26-Dec-2023 07:12 PM

Nice one

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Milind salve

26-Dec-2023 06:49 PM

Nice

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Gunjan Kamal

25-Dec-2023 11:00 PM

👏👌

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