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अय्यारी

सच्ची मुहब्बत कहता है तू, फिर इसमें अय्यारी कैसी।

प्रीत,समर्पण,फरेब दिखाकर, करली ये तैयारी कैसी।

तुझसे सब उम्मीदें टूटी, परछाईं का साथ न छूटा।
जग है एक भीड़ सा मेला, बिछड़ ग‌ए पर हाथ न छूटा।

कैसे कोई पहचान करे, छुपाए हैं असली चेहरा।
पैरों से गरदन तक दलदल, लिपा पुता है रंग जो गहरा।

ओझल कब तक रहेगा मुखड़ा, नकाब तेरा हट जाएगा। 
मधु चासनी गुड़ की मिलावट, कैसे रंग निखर पाएगा।

वेष बदलकर धोखा देकर, मक्कारी का चोला पहना।
लेकिन कैसे भूल गया तू, प्रेम शांति खरा है गहना।

अय्यारी के रंग रंगकर, कब तक डांके डालेगा तू। 
बारिश आए आँधी आए, कैसे मुँह को ढाँपेगा तू।

प्रस्तर कर में धारण करके, भूल गया शीशे का घर है।
चहुँओर बिखरेंगी "श्री" किरचें, सबसे पहले तेरा दर है। 

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव 'श्री"
धौलपुर (राजस्थान)


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9 Comments

Milind salve

26-Dec-2023 06:49 PM

Nice

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Gunjan Kamal

25-Dec-2023 11:00 PM

👏👌

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बेहतरीन अभिव्यक्ति और खूबसूरत भाव

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Sarita Shrivastava "Shri"

24-Dec-2023 03:33 PM

🙏🙏

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