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किरण

नव नूतन आशा रश्मि बिखरी दिशि चहुंओर,

क्षितिज से आई सलज्ज मनभावन सी भोर।

प्रफुल्ल उल्लिसित होकर तन मन महक उठा,
नई रोशनी का स्वागत मन मयूर मचल उठा,
आसमान से बदली आई घड़ घड़ करती शोर।
क्षितिज-----

नव आगत के स्वागत में सूरज ने ली अंगड़ाई, 
अलसाई अलसाई सी धूप कण-कण में बिखराई, 
मौसम ने फेर लिया मन बन गया धूप का चोर।
क्षितिज------------

स्वरचित- सरिता श्रीवास्तव “श्री”
धौलपुर (राजस्थान)

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5 Comments

Alka jain

26-Dec-2023 07:04 PM

Nice one

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Milind salve

26-Dec-2023 06:42 PM

Nice

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Gunjan Kamal

25-Dec-2023 10:50 PM

👏👌

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