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सनक

मिला है साथ तेरा जबसे,

भुला बैठे हैं हम खुद को।
मुट्ठी में कर ली है दुनिया,
गंवा बैठे सुध-बुध को।

हाथों में सबके है प्रीतम,
उसे नज़दीक रखते हैं,
हो जाए नज़रों से ओझल, 
ठण्डी आहें भरते हैं।

सोया है रो-रो कर बच्चा,
माँ मोबाइल सहलाए,
पहना दी हाथों में कच्छी,
पांव में चूड़ी पहनाए।

करके चेहरे पर मैकअप,
कभी साड़ी बदलती है,
बजाकर कनफोड़ू संगीत,
क्लिप में रंग भरती है।

जल गई चूल्हे पर सब्जी,
कुकर ने चीखकर बोला,
फ़क़ीर भी लौटा है भूखा,
द्वार उसने नहीं खोला।

मंगा कर होटल से भोजन,
परस कर जीमने बैठे,
गिलास में कौर बोरते हैं,
ज़ायका भूलकर बैठे, 

संगिनी गुस्से से चिल्लाए,
भोजन ध्यान से करिए,
खाते हो रोटी पानी से,
उसमें “श्री” दाल तो भरिए।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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6 Comments

Shnaya

26-Dec-2023 08:53 PM

Nice one

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Varsha_Upadhyay

26-Dec-2023 04:59 PM

V nice

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Alka jain

26-Dec-2023 02:45 PM

Nice

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