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माया

हे भगवन ये कैसी माया, 

कहीं धूप कहीं शीतल छाया।
इक नर को गद्दी पै बिठाया,
दूजा उसका दास बनाया।

ऊँचे-ऊँचे महल तिबारे, 
कोई तरसे बेघर द्वारे।
कहीं लिबासों के अंबारे, 
कहीं सिकुड़ते लोग उघारे।

कोई भूखा तरसे रोटी, 
कहीं फिंकती घर से रोटी।
कोई गटके जल से रोटी, 
कहीं कलेवा माखन रोटी।

पग-पग भीख मांगता कोई,
नर उछालता सिक्का कोई।
पी कर सुरा मारता कोई,
सिर झुक माफी मांगे कोई।

कैसा भव तेरा कन्हाई,
क्या आधार समझ न पाई।
कुक्षि से जो अंगजा जाई,
हो जाती है वही पराई।

मिलन कहाँ है रुक्मणि जैसा,
विरह मिला श्री राधे जैसा।
कहीं वनवास सीता जैसा,
कहीं विछोह उर्मिला जैसा।

राधे करती कृष्णा पूजा,
जप माला नहीं काज दूजा।
आह भरे वृषभानु तनूजा,
रुक्मणि को "श्री" कृष्णा पूजा।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)

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8 Comments

Gunjan Kamal

28-Dec-2023 02:58 PM

👌👏👍

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नंदिता राय

27-Dec-2023 01:41 PM

Nice one

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Sarita Shrivastava "Shri"

27-Dec-2023 08:37 PM

🙏

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सुन्दर सृजन

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Sarita Shrivastava "Shri"

27-Dec-2023 08:37 PM

🙏

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