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चेतना

चेतना!!

चेतना शून्य,
हुई है मानवीयता!!
अबोध अनजान बनकर, 
अनकहे शब्दों से दबकर,
चतुराई का लबादा ओढ़े लिप्त है,
मानव स्वार्थ और अपनेपन में!
स्वयं में डूब कर,
स्वयं से ही दूर बहुत दूर!!
रिक्तता और अंधकार,
दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आता!!
खोज में है हर कोई,
क्या चाहिए??
नहीं पता!!
किसकी तलाश है??
नहीं पता!!
लेकिन चाहिए ज़रूर,
बहुत कुछ चाहिए!!
भटक रहा है जन्म-जन्मों से,
संज्ञा शून्य होकर!! 
भुला कर शख्सियत अपनी,
मशग़ूल है हेरफेर में!
भूल कर खुद को,
खुद को ही तलाशते हुए!!
थरती, आकाश, पाताल में,
खुद को आजमाता है!
भुलाकर अंतस मन“श्री” चेतन आभा!!
बिखरे अंधकार में दूर तलक भटक जाता है!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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12 Comments

Gunjan Kamal

31-Dec-2023 11:21 AM

👏👌

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Shnaya

30-Dec-2023 10:06 AM

Nice

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Sarita Shrivastava "Shri"

30-Dec-2023 05:01 PM

🙏

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Sushi saxena

29-Dec-2023 06:00 PM

Nice one

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Sarita Shrivastava "Shri"

30-Dec-2023 05:01 PM

🙏

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