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सिसकी

कौन सुने सिसकी इस मन की,

बीते वक्त की बात हुई।
सदियाँ बीत चुकी हैं अब तो,
कब अन्तर्मन से बात हुई।

याद नहीं आता है वह पल,
कब हमने दर्पण देखा।
आँखों के रस्ते कब उतरे,
मन से मन की बात हुई।

दिल दर्पण में झांक के देखा, 
मैं की इक दीवार मिली। 
अंत समय में मैं जब टूटा,
तब मूरत साक्षात हुई।

आँखों ने जब अश्क बहाए,
दिल भी संग-संग रोए।
भीगी पलकें गिरते आँसू,
दर्द ए दिल बरसात हुई।

लम्हा-लम्हा साँसें थमती,
काली-काली परछाईं।
धक-धक पहुँच रही कानों तक,
बात-बात जज्बात हुई।

आईने में अक्स निहारूँ।
मन अंदर अँधियारा है।
झुकती नज़रें दीदार करें, 
साफ-साफ सौगात हुई।

अलि कुंजन गुन-गुन बगिया में,
कली-कली मदहोश हुई।
भ्रमर शब भर कलि आलिंगन,
प्रीत गात से गात हुई। 

पुष्पित कलियाँ महकती खुश्बू,
जोश जवान बहार हुई।
बीत गया मधुमास फिजां से,
शिशिर से मुलाकात हुई।

कोरी आँखें हुआ सवेरा,
कमसिन आँखें चार हुई।
तन्हाई ने आकर घेरा,
जीवन साँसे घात हुई।

साजन की राहें तकती हूँ,
वह कब का भीतर बैठा।
प्रीत बीथियाँ बहुत संकरी,
रूह-रूह मुलाकात हुई।

आज न जाने कैसा मौसम, 
रोम-रोम रोमांचक है।
चलो सखी साजन "श्री" गलियाँ।
जीवन संध्या रात हुई।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)

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5 Comments

Gunjan Kamal

08-Jan-2024 08:48 PM

👏👌

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Rupesh Kumar

07-Jan-2024 09:43 PM

Nice

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HARSHADA GOSAVI

05-Jan-2024 11:18 AM

Awesome

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