Tabassum

Add To collaction

एहसास


मेरी डायरी से ••••

उम्र के इस पड़ाव तक आते आते 
धीरे-धीरे 
बहुत कुछ  खोया, 
कुछ मिटता और 
कुछ संकुचित सा 
होता चला गया 
कब क्या पीछे छूट गया 
 पता नहीं 
जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर 
जब पीछे मुड़ कर देखा सब धुंधला ही नजर आया 
तब अपने ही अंदर 
कुछ बचा हुआ 
महसूस हुआ 
जिसे 
कुछ सिसकता सा 
 कुछ रिसता सा पाया 
जो बचा सा था 
शायद 
कुछ गहरे एहसास थे 
जो अंदर ही अंदर सुलग रहे थे 
गीली लकड़ी के माफ़िक 
उस सुलगते सिसकते एहसासों के समुंदर में डूबता चला गया 
ये मेरा  मग्न मन !!

   16
7 Comments

Mohammed urooj khan

23-Jan-2024 01:05 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Reyaan

22-Jan-2024 01:09 AM

Nice

Reply

Rupesh Kumar

21-Jan-2024 05:57 PM

Nice one

Reply