एहसास
मेरी डायरी से ••••
उम्र के इस पड़ाव तक आते आते
धीरे-धीरे
बहुत कुछ खोया,
कुछ मिटता और
कुछ संकुचित सा
होता चला गया
कब क्या पीछे छूट गया
पता नहीं
जिंदगी के इस मोड़ पर आ कर
जब पीछे मुड़ कर देखा सब धुंधला ही नजर आया
तब अपने ही अंदर
कुछ बचा हुआ
महसूस हुआ
जिसे
कुछ सिसकता सा
कुछ रिसता सा पाया
जो बचा सा था
शायद
कुछ गहरे एहसास थे
जो अंदर ही अंदर सुलग रहे थे
गीली लकड़ी के माफ़िक
उस सुलगते सिसकते एहसासों के समुंदर में डूबता चला गया
ये मेरा मग्न मन !!
Mohammed urooj khan
23-Jan-2024 01:05 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Reyaan
22-Jan-2024 01:09 AM
Nice
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Rupesh Kumar
21-Jan-2024 05:57 PM
Nice one
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