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चमचा


चमचा!
हाँ बिन चमचा,
कोई चले न काम!
गर्मागर्म खीर बन गई,
चमचे से मनुहार कीजिए!
कटोरियों में परस-परस कर,
चमचा डूब-डूबकर खाए!
चाटुकारिता की फुलझड़ियाँ,
मलाई चाट-चाट भड़काए!
कितना खाली कितना भरा??
अंदर तक घुसपैठ बनाए!
कर देता है रीता-रीता,
घर का भेदी लंका ढाए!
कितना भी तुम उसे खिलाओ,
आकण्ठ उसकी डुबकी लगाओ,
फिर भी खाली ही रहता है,
उसका पेट नहीं भरता है!
कोई काम पड़े दफ्तर में,
अधिकारी सानिध्य सफ़र में!
पैर पकड़ने चमचा चाहिए,
मुट्ठी में गाँधी को रखिए,
वर्ना जूते घिसते रहिए!!
चप्पल में आँखें बन जाएं,
फिर भी काम नहीं बन पाए!
लगा लिए चक्कर पर चक्कर,
बन जाइए बेशक घनचक्कर!
कोई नहीं सुनवाई होगी,
सिर्फ थकान और शिथिलन होगी!
भूल जाइए मेहनत के चक्कर,
स्वाभिमान खूंटी पर रखकर!
सबसे पहले कतार में लगिए,
सीधे जाकर पैर पकड़िए!
कस कर उनको जकड़े रखिए!
अपना काम बनाकर हटिए!
लड्डू दोनों हाथ में होंगे,
पाँचों उँगलियाँ घी में रखकर,  
सिर अपना कढ़ाई में रखिए!
स्वाभिमान गर आड़े आए,
गर अंतस मन धकियाए!
लक्ष्मी को चमचा पकड़ा कर,
उसके थाल में मलाई परस कर!
“श्री” सबसे पहले काम बनेगा!
शाबाशी का हाथ जमेगा!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 



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8 Comments

Mohammed urooj khan

23-Jan-2024 01:09 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Milind salve

21-Jan-2024 08:06 PM

Nice

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Rupesh Kumar

21-Jan-2024 05:59 PM

Very nice

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