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प्रभाती

धूप सुनहरी बिखरी आँगन,

नींद भगाए कलरव कानन,
इठलाती बलखाती रश्मियाँ, 
मधुर प्रभाती गूंजे सावन।

पंछी कुंजन भोर प्रभाती,
कुहुक-कुहुक कोयल मन भाती,
सूरज ने भेजी वसुधा को,
झिलमिल किरणें लाईं पाती।

मलय समीरण मुक्त रवानी,
सविता की करती अगवानी,
सतरंगी झिलमिल सी चादर,
चली बिछाने धूप सुहानी।

मंदिर में घण्टी की टन-टन,
भजन कीर्तन आरती वंदन,
जाग गए हैं श्री हरि शंकर,
भक्त लगाएं घिस-घिस चंदन।

नैना खोलो मोहन प्यारे,
जिमि जग जंगम के रखवारे,
दिनकर रश्मि जगाने आई,
जन-जन “श्री” आँखों के तारे।

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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19 Comments

Mohammed urooj khan

27-Jan-2024 06:48 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Sarita Shrivastava "Shri"

28-Jan-2024 03:56 PM

🙏🙏

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बेहतरीन

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Sarita Shrivastava "Shri"

26-Jan-2024 09:11 PM

🙏🙏

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Dilawar Singh

26-Jan-2024 09:17 AM

👌👌

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Sarita Shrivastava "Shri"

26-Jan-2024 09:11 PM

🙏🙏

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