स्वभाव
मधुर स्वभाव से रिश्ते महके,
मन का मैल पिघल जाए।
तन-मन पुलकित हँसी खुशी से,
मेघ प्रेम रस बरसाए।
क्या है तेरा मेरा जग में,
चार दिन का बसेरा है,
सद्कर्मों के चर्चे भव में,
कौन कहे कहाँ डेरा है।
हँसी खनकती घर-आंगन में,
पायल की रुन-झुन मधुरम।
झूम उठे घर कोना-कोना,
निखरे हुनर नार चतुरम।
सूरत से सुन्दर नहीं बेशक,
सीरत ही मनमोहक है।
मन के तार तरंगित कर दे,
प्रेम-प्रीत सम्मोहक हैं।
गाएं प्रभाती मधुर कण्ठ से,
कंगन पायल संग बजे,
आम्र शाख पर कोकिल कुंजन,
मन मंदिर में शंख बजे।
अंत समय जब निकली अर्थी,
अपार मजमा दौड़ पड़े,
श्रद्धांजलि अंतस से निकले,
चार नहीं चालीस खड़े।
आंगन में तुलसी का पौधा,
दीपक-बाती रोज मिलें।
बुरी बलाएं दूर भगें सब,
प्रीत के “श्री” फूल खिलें।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Gunjan Kamal
16-Feb-2024 11:46 PM
शानदार
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Mohammed urooj khan
15-Feb-2024 10:59 AM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
14-Feb-2024 07:24 AM
बहुत ही सुंदर और संदेश देती हुई अभिव्यक्ति
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