रुत-बसंती
ओढ़ चुनरिया पीत रंग की,
इतराती मदमाती धरती।
हरे-भरे बागों की मलिका,
कुहुक-कुहुक कर मस्ती भरती।
कुसुमाकर ने छटा बिखेरी,
बासंती चूनर फैलाकर,
पिक करती वंदन अभिनंदन,
मधुर कण्ठ से गीत सुनाकर।
पत्ता-पत्ता सर-सर झूमे,
ठिठुरन पाला दूर हुआ है,
खिलखिला कर हंसे बसंती,
गुल बहार का राज हुआ है।
कच्ची कलियां अलसाई सी,
अलि गुंजन की राह निहारें,
प्रीत मिलन की बढ़ती पींगें,
कमसिन मोहक रूप संवारें।
कामदेवता तीर चलाए,
हिलोरें हसरत उमंग भरें,
राह तके सजनी साजन की,
प्रिय आकर उसकी मांग भरें।
चंचल हवा चले इठलाती,
गुलशन की खुशबू में पगकर,
देवी वंदन करे चराचर,
फूल समर्पित अंजुलि भर-भर।
रंग बसंती हुआ धरा का,
सप्त राग स्वर हुए समाहित,
माँ सरस्वती पूजन अर्चन,
“श्री” जग जंगम हुए सुवासित।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
नंदिता राय
22-Feb-2024 12:15 AM
Nice one
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Gunjan Kamal
20-Feb-2024 02:42 PM
👌🏻👏🏻
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Mohammed urooj khan
19-Feb-2024 11:37 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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