रुत-बसंती

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ओढ़ चुनरिया पीत रंग की, इतराती मदमाती धरती। हरे-भरे बागों की मलिका, कुहुक-कुहुक कर मस्ती भरती। कुसुमाकर ने छटा बिखेरी, बासंती चूनर फैलाकर, पिक करती वंदन अभिनंदन, मधुर कण्ठ से गीत ...

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