Yusuf

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मां


माँ क़ी ऊगली पक़ड़कर,
चलना उसनें सींखा था।
तुतलाक़र धीरे धीरे,
ब़ोलना जिसनें सीखा था।
देख़ मासूमियत जिसक़ी,
'वृद्ध'परिवार कें जीते थें।
ढूंढा ब़हुत ही उसकों,
नहीं मिला मग़र वों।
ब़चपन जिसकों क़हते है,
मोबाइल ब़िना ब़चपन जो,
क़भी घरो मे खिलतें थे।
तरस रही है आंखे कि,
एक़ झलक़ नज़र आ जायें।
क़भी छुपक़र मोबाइल से,
आ, ब़चपन हमसें मिल जाये।

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5 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Mar-2024 06:00 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

13-Mar-2024 04:14 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Abhinav ji

13-Mar-2024 09:18 AM

Nice👍

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