गृहणी
गृहणी!!
जिसका गृह ऋणी!!
भोर की पहली किरण,
मुखड़े पर पड़ते ही,
आँखें मलते हुए,
नींद को धकेलकर,
जिम्मेदारी की चादर,
तन पर लपेट लेती है!
पुरुष कुनमुनाकर,
करवट बदल कर,
नींद के आगोश में,
मीठे ख्वाबों की छाँव में,
बेपरवाह सो जाता है!
घर के अधूरे काम समेटती हुई,
बाथरूम में नहाने घुस जाती है।
भगवान के आगे सुख-शांति का,
दीपक जलाती है!!
रसोईघर में पहुँचकर..
एक सरसरी नज़र,
प्रथम कार्यक्षेत्र पर डालती है!
गैस पर चाय चढ़ाकर,
बच्चों का दूध उफानती है!
प्यारी मुस्कान के साथ,
पति को चाय पकड़ाती है!
वात्सल्य से भीग बच्चों को जगाती है!
सास-ससुर के कमरे में पहुँच,
दूधों नहाओ पूतों फलो,
आशीष पाकर निहाल हो जाती है!
चाय पकड़ा कर रसोई में,
वापस लौट आती है!
सब्जी काटते-काटते,
चाय के घूंट भरती है!
छोंकते-छोंकते आटा सानती है!
रोटियां सेंकते-सेंकते,
पति बच्चे खुद का टिफिन लगाती है!
सास-ससुर का भोजन,
सलीके से रखकर,
तैयार होते-होते बच्चों को,
संवारती है!
टिफिन बस्ते में रखकर,
पानी बोतल पकड़ा कर,
दौड़ते-भागते स्कूल बस तक छोड़ आती है!
पति को टिफिन पकड़ाकर,
ऑफिस के लिए रवानगी,
मुस्कुराते हुए बायॅ-बाॅय दोहराती है!
टिफिन उठाते हुए बैग में ठूंस,
जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाते हुए,
प्रथम कार्यक्षेत्र से,
द्वितीय कार्यक्षेत्र के लिए निकल जाती है!!!
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
kashish
27-Mar-2024 03:16 PM
Awesome
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Gunjan Kamal
27-Mar-2024 01:46 PM
👏🏻👌
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Punam verma
26-Mar-2024 08:42 AM
Very nice👍
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