नीति-वचन-3
नीति-वचन-3
बिपति-काल जे धीरज राखै।
छिमा सबद, भे क्रोधहि भाखै।।
सभा मध्य जे बक्ता चातुर।
करत जुद्ध जे रहै बहादुर।।
अभिरुचि जासु रहहि जसु-कीर्ती।
लागल रहै श्रवन श्रुति प्रीती।।
अस रह प्रकृति जगत जन उत्तम।
निरबल होंय सहाय नरोत्तम ।।
सुख-दुख,बिजय-पराभव एका।
होंय न बिचलित दुक्ख अनेका।।
गो-गरीब-सरनागत-पालक।
सत्य-अहिंसा-धरम-प्रचारक।।
जननी-जनम-भूमि के रच्छक।
सदा रहहिं सद्गुनहिं प्रबर्तक।।
ऊपर सदा मान-अपमाना।
उत्तम जन अस चरित बखाना।।
सभ जन-प्रेमी,सभ हितकारी।
अहहिं नरोत्तम जन उपकारी।।
दोहा-नाँघहिं नहिं सीमा कबहुँ,उत्तम,सिंधु समान।
नीति-रीति अरु प्रीति बल,करहिं जगत-कल्यान।।
डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 12:34 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Shnaya
11-Apr-2024 05:03 PM
V nice
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HARSHADA GOSAVI
03-Apr-2024 10:47 AM
Awesome
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