नीति-वचन-3

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नीति-वचन-3 बिपति-काल जे धीरज राखै। छिमा सबद, भे क्रोधहि भाखै।।     सभा मध्य जे बक्ता चातुर।    करत जुद्ध जे रहै बहादुर।। अभिरुचि जासु रहहि जसु-कीर्ती। लागल रहै श्रवन श्रुति ...

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