नीति-वचन-8
*नीति-वचन*-8
त्वचा-अकर्षन जदपि लुभावै।
छबि-अंतरतम असल कहावै।।
पहिरि पटम्बर हर तन सोहै।
पर नर-बोली-भाषा मोहै।।
सिच्छा-दिच्छा-कला बिहीना।
सींग-पूँछ पसु जानउ हीना।।
चरित-आचरन,संपति-पूजी।
जीवन कै नहिं औरउ दूजी।।
वित्त-हानि नहिं हानि कहावै।
रुपिया-पइसा आवै-जावै ।।
स्वास्थ्य-हानि कछु जानउ हानी।
चरित-दोषु खलु मूल गवानी।।
संपति-बिपति,दिवस अरु राती।
लाभु-हानि, जसु-अपजसु थाती।।
जे नर रहहि मानि इक रूपा।
करमइ जोगी पुरुष अनूपा।।
करमइ पूजा,करम उपसना।
बसहिं देव अस नर की रसना।।
बिनु चिंता फल आव न आवै।
करै करम जे जोगि कहावै।।
गूढ़ ग्यान अस गीता जानउ।
इहइ रहसि बस जीवन मानउ।।
जौं चाहसि निज कुल-कल्याना।
करउ करम बिनु फल धरि ध्याना।।
साधु-संत,मुनि-जोगी-ध्यानी।
अहहि प्रधान करम सभ मानी।।
दोहा-जीव जगत मा आइके, करै करम जस धाइ।
उत्तम-मद्धिम जस करम,वइसइ फल इहँ पाइ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
17-Apr-2024 11:46 AM
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