नीति-वचन-10
*नीति-वचन*-10
मूरख-हृदय चेत नहिं ग्याना।
पाथर-मूल न उपजै दाना।।
बढ़ै-मोटाय कबहुँ नहिं ब्याला।
देहु ताहि केतनउ पय-प्याला।।
सठ नहिं सांत पाइ उपदेसा।
बहिर सुनै नहिं हितइ सनेसा।।
बिना समर्पन होय न प्रीती।
धन-सम्पति नहिं प्रेम क रीती।।
तनबल-धनबल-तपबल-ग्याना।
सकहिं न खींच कबहुँ त्रिय-ध्याना।।
नारी-हिय हुलसै बड़ जोरा।
लखतै पुरुष अकर्षक-गोरा।
पाछे तन-धन-तप-बल भावै।
तिरिया-हृदय तबहि सुख पावै।।
कोइल-कुहुँक, पपिहरा-बानी।
कह बिरही-मन दुखद कहानी।।
सीतल-मधुर बोल मन भावै।
जब प्रेमी-प्रियतम घर आवै।।
जनम सुफल तबही जग जानउ।
जब अनाथ बालक कोउ पालउ।।
सरनागत-रच्छा जे करई।
पुन्य-प्रताप नाथ कै पवई।।
प्रभु-प्रसाद कै नर अधिकारी।
होवहि जबहिं जगत-उपकारी।।
दोहा-बिना त्याग सम्भव नहीं,जगत कबहुँ उपकार।
उपकारी प्रिय नाथ कै, करहिं नाथ उद्धार ।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
17-Apr-2024 11:53 PM
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