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नीति-वचन-12

नीति-वचन-12
जप-तप-नियम-धरम नहिं कामा।
करैं निवास सुद्ध मन रामा।।
    पढ़ि-पढ़ि पोथी-ग्रंथ बिसाला।
     होंय पात्र कछु हास्य कराला।।
पंडित लोकाचार बिहीना।
अप्रिय जस खरवाँस महीना।।
     फागुन बरखा,साँवन सूखा।
     बहु अभागि जन-जीवन रूखा।।
पाइ कर्म-फल मन-अनुकूला।
मुदित मगन मन झूलै झूला।।
    जे कछु चमकै नहिं सभ सोना।
    कारिख मन रह बदन सलोना।।
पुरुवा बहै जबहि झकझोरा।
देइ तोरि तन पोरइ-पोरा।।
   सँवरइ भागिहि करम-अधारा।
   कायर नर बस दैव-सहारा।।
इच्छासक्ती सक्ति प्रधाना।
आतम-बल परुषार्थ-खजाना।।
    आपुन बल अरु अपुनै ग्याना।
    बैभव-बिभव आपुनो नाना।।
गाढ़ समय पै होंय सहाई।
दूजा-धन-बल काम न आई।।
    निज भरोस भरोस भगवाना।
    अहहि कथन अस संत-सुजाना।।
पीपर-पात सरिस मन डोलै।
सुंदर छबि जब हिय हिचकोलै।।
    जे निज मन पे रखै नियंत्रन।
    मिलै ताहि जन प्रेम-निमंत्रन।।
दोहा-नेमी-धर्मी-संजमी,पावै सभ जन प्रेम।
         जसु-कीरति ताकर बढ़ै,होय कुसल अरु छेम।।
                      डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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2 Comments

Mohammed urooj khan

23-Apr-2024 04:17 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Arti khamborkar

22-Apr-2024 03:38 PM

Amazing

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