नीति-वचन-16
*नीति-वचन*-16
देवकि-गरभ कृष्न-अवतारा।
कौसल्या प्रभु राम सँवारा।।
गौरी-तन तें भए गनेसा।
प्रथम देव जे पुत्र महेसा।
लछिमी-गार्गी औरु गौतमी।
अहहिं नारि सभ परम सुधर्मी।।
जोगी-जती-तपस्वी-ध्यानी।
ऋषी-मुनी अरु संत-सुजानी।।
स्त्री अहहि सबहिं कै माता।
माता कबहुँ न होय कुमाता।।
जे बड़ चिंतक-लेखक-साधक।
कबहुँ न स्त्री अस जन बाधक।।
स्त्री सदा प्रेरना-स्रोता।
कालिदास-तुलसी-प्रस्तोता।।
स्त्री परम मृदुल- सहृदया।
गाढ़ काल पे रह बड़ अभया।।
निर्नय-निस्चय-दृढ़ संकल्पा।
लइ के निर्नय डिगे न स्वल्पा।।
जल-थल-नभ-मंडल चहुँ ओरा।
सकल बिस्व मा पिटे ढिंढोरा।।
नारी-ग्यान-मान-बल-तेजा।
अब नहिं त्रिय-प्रभाव निस्तेजा।।
दुइ कुल-लाजि नारि के हाथे।
नैहर-पीहर साथे-साथे ।।
घर-ऑफिस अरु कुल-परिवारा।
परम पुनीत नारि-ब्यवहारा।।
आधी अहही संख्या नारी।
पुरुष बरोबर हक़-अधिकारी।।
दोहा-माता-पत्नी अरु सुता, भगिनी नारी होय।
बिनु नारी नहिं सृष्टि जग,रख संबंध सँजोय।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र।
9919446372
Gunjan Kamal
30-Apr-2024 08:09 AM
शानदार
Reply
Mohammed urooj khan
29-Apr-2024 01:50 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply